Monday, May 6, 2019

अधूरी नज़्म

शब् की पेशानी पर एक नर्म बोसा था क्या
या तुमने एक नज़्म का सिरा खोला था
मैं सवेरे किसी प्लेटफार्म की बेंच पर बैठी मुन्तज़िर थी
कब सिरा खोजते तुम 
किसी रेल की खिड़की पर दिख जाओ
या शायद जब मैं पीछे मुडूं तुम्हारे तलवों की आहट पर
सुफ़ेद कुर्ते की बांह मोड़ते तुम किसी किताब की जिल्द पर
मेरा नाम उकेरते दिख जाओ
मैं यूँ अटकी हूँ नज़्म के बीचों बीच जैसे
हलक़ में कोई इज़हार अटका हो
सुनो! तुम आओ जब...दूसरा सिरा साथ लेते आना
या इस दफा मेरे नाम कोई मुकम्मल नज़्म कहना
मैं सीख गयी हूँ
अधूरी नज़्म में मिसरे जोड़ना
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आरती

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