क़ुदरत ने तुम्हारी बायीं भौंह पर
एक लहर टाँकी
और तुम समन्दर हो गए…
अब तय था मेरा नदी होना
तुम्हारे वजूद का हिस्सा होना
पर क्या तुम भी मेरे वजूद में
अपना अक्स देखते हो ?
तुमसे फ़ासले बनाए...
पर इतने दिन तुमसे दूर रही, या ख़ुद से !!
लो, उतर आई हूँ तुम्हारी लहरों में एक बार फ़िर
सोहनी की मानिंद…
उम्मीद के कच्चे घड़े में बाहें डाले
उम्मीद...…है न
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(आरती)
२२/११/१४