आँख की कोर मेँ जो अटका है उँगली की पोर पर जो रखा है जमा है जो रुमाल की तहोँ मेँ लगीँ काजल की लकीरोँ के बीच.. क्या कभी पहुँचा हैँ तुम्हारी पल्कोँ तक भी वो आंसू... (आरती)
देर तक जागती रही थी चाँद के डूब जाने तक पर रात के खाके मेँ रखी उसकी बेतरतीब बातेँ नाकाफ़ी थीँ.. नाकाफ़ी एक उम्र के लिए सदियोँ का फेरा था उनमेँ जिसका सिरा खोजती रही थी मैँ अब बस निशान रह गये हैँ बाकि सुबह की हथेलियोँ पर... (आरती)