Saturday, October 26, 2013






मुझे बारिश में भीगना पसंद था, तम्हें बारिश से बचना...
तुम चुप्पे थे, चुप रह कर भी बहुत कुछ कह जाने वाले। मैं बक-बक करती रहती। बस! वही नहीं कह पाती जो कहना होता।
तुम्हें चाँद पसंद था, मुझे उगता सूरज। पर दोनों एक-दूजे की आँखों में कई शामें पार कर लेते।
मुझे हमेशा से पसंद थीं बेतरतीब बातें और तुम्हें करीने से रखे हर्फ़।
सच! कितने अलग थे हम..
फ़िर भी कितने एक-से।

-आरती

Friday, October 25, 2013



 


ख्व़ाब आँखों में क़ैद किसी क़ैदी से लगते हैं
पलकों की सलाखों के पीछे दुबके हुए, कभी सहमे हुए से

कई रतजगी काटी हैं दोनों ने साथ-साथ
कभी ख़्वाबों ने तो कभी आँखों ने थपकी दे कर
कि सो जा अब रात भी थक चली है

पर ये ठीठ-से ख़वाब अपना कन्धा उचकाते हैं
मुंह बनाकर जीभ चढ़ाते हैं ,कभी आते ही नहीं तो कभी आ कर जगाते हैं

कभी आते ही नहीं तो कभी आ कर जगाते  हैं......


(आरती)


 

Monday, October 21, 2013

ये मैं ही तो हूँ


 

एक थका मांदा रस्ता
मेरे हलक़ से होकर गुज़रता है

आया कहाँ है मालूम नहीं
पर मिलता है जा कर
मेरे धड़ के बायीं  ओर बनी
अँधेरी कोठर में....

कोई मुसाफिर कोई राहगीर
नहीं दिखता उस पर चलता हुआ

पर दो पैर दिखते है
बनते-मिटते, मिटते-बनते

आखिर कौन है वो
जो आइना पहने फिरता है

हाँ ये मैं ही तो हूँ
जो ख़ुद से चलकर खुद तक पहुँचता हूँ

जो ख़ुद से चलकर खुद तक पहुँचता हूँ........


-(आरती)

Friday, October 11, 2013

तुमने अपनी जेब से सबसे चमकीला सिक्का निकालकर
मेरी हथेली  रखा था,
उस दिन से चाँद फलक पर नहीं...
मेरी हथेली पर खिलता है।

-[आरती]