जज़्बातों का दरिया, लफ़्ज़ों के लिबास.....
मैं बस अहसास लिखती हूँ। शब्द महज़ लिबास भर हैँ।
Monday, December 22, 2014
अलाव
सोचती हूँ
कभी कह पाऊँगी तुमसे
जो अब तक हऴक मेँ अलाव लिए बैठी हूँ..
-आरती
Sunday, December 21, 2014
संवाद
तुम्हारे - मेरे बीच
कोई बात नहीं
सवाल नहीं
जवाब नहीं
बिना बोले भी तो बातें
हुआ करतीं हैं न …
मेरी नज़्मों, रंगों में उसका चेहरा
ताक़ीद करते हैं इस बात की.…
ख़ामोश लफ्ज़ भी संवाद रचा करते हैं।
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आरती
Tuesday, December 9, 2014
सबब
तुम्हारी आँखें देखीं
तब जाना समंदर के ख़ारे होने का सबब
सच! समंदर खारा होता है और खरा भी.....
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आरती
मंज़िल की तलब
Monday, December 1, 2014
प्रेम
प्रेम, कब अल्फ़ाज़ोँ का मोहताज हुआ है..
वो तो परवान चढ़ता है पीड़ा के सबसे गूंगे क्षणोँ मेँ।
-आरती
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