Monday, April 25, 2016

मेरे हिस्से की कहानी

बहुत - सा धुँआ और गर्द 
स्मृति की पीठ पर जमी खरोंच होती है 
जो आहिस्ता - आहिस्ता सोखती रहती है... 
उसकी तरलता 
ऐसे में मैं किसी द्वंद्व से गुज़रती हूँ 
जहाँ हर क्षण जीना, मरना ही है।
ढेर- सी चुप आवाज़ें भाप की तरह
मेरे भीतर उठती हैं
और फ़िर पर- कटे पक्षी की तरह
अपनी उड़ान खो देती हैं।
तुम, जिसको अब मेरी आवाज़ भी नहीं छूती
मैं चाहती हूँ तुम्हारे लिए अनजानी ही रह जाए
मेरे हिस्से की कहानी
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आरती

Thursday, April 21, 2016

आदि और अंत से परे

तुम्हें हार चुकने के बाद भी
क्यूँ ये आँखें वो जगह ढूँढती हैं
जहाँ हमेशा से मैंने होना चाहा था...
जगहें तय होती हैं किरदारों की तरह
ये तय होना, प्रेम कहानियों के सिरे खोलता है
उन्हें आदि और अंत से परे ले जाकर...
-आरती

गति का ज्ञान

ज़मीन पर लट्टू घुमाता है वो 
कितने सधे हाथों से 
कि समय की फिरकी पर 
लिपटते जाते हैं दुःख - सुख के धागे 
दुःख के धागे माथे पर उभर आते हैं 
तो सुख के, होठों से चिपक जाते हैं 
इन धागों की गिनती मत करना 
कि नाप सको इनका उभरना और चिपकना 
हर किसी के बस में नहीं ये 
गति का ज्ञान...
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आरती

Wednesday, April 20, 2016

रहने दो

सुनने की तलब कहने की रसम रहने दो
जो बात होंठों पर रुकी है वो बात रहने दो
-आरती

Thursday, April 7, 2016

इंतज़ार प्रेम के गर्भ मेँ फलता शिशु

अपनी दो हथेलियोँ से मैँने
अपनी दो आँखेँ ढंक ली हैँ
पर कुछ है जो अनवरत बढ़ता जाता है और दिखाई नहीँ देता
इंतज़ार, प्रेम के गर्भ मेँ फलता शिशु है।
(आरती)