Friday, December 18, 2015

अकेलापन अकेला नहीं होता

दिसंबर की सर्द रात में 
लैंपपोस्ट के नीचे पड़ा लोहे का काला बेंच 
लैंपपोस्ट से झरती मद्धम पीली रौशनी से 
संवाद रचता है 
वैसे ही जैसे 
छत की रेलिंग सीढ़ियों से
चाय का ख़ाली कप मेज़पोश से
दरवाज़े पर चढ़ी सांकल ताले से
हरसिंगार धूल से
दरारें दीवार से
सेकंड की सुई मिनट की सुई से
मैं ख़ुद से
क्यूंकि अकेलापन कभी भी
अकेला नहीं होता
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आरती

केँद्र बिँदू

कुछ नहीँ मेँ 
कुछ तो है
तुम्हारी मेरी कहानी का यही 
केँद्र बिँदू है
(आरती)

Sunday, December 13, 2015

'अग्निपथ ऑल इंडिया आर्ट एग्ज़िबिशन' जो कि 9 दिसंबर को आर्टिज़न आर्ट गैलरी के ऑडिटोरियम मेँ औरगनाईज़ किया गया था, उसमेँ मेरी पेँटिँग 'Saving Humanity' ने गोल्ड मेडल जीता है।




तुम न होती तो

अक्सर हम लड़कियाँ
इधर-उधर बिखरे सामान को
समेटती रहती हैं
बिखराव पसंद नहीं हमें शायद
पर अंदर जो बिखराव है,
क्या कभी उसे समेटती हैं हम
मन की  दराज़ में जाने कितनी बंद डायरियां
उलझी पड़ी होती हैं
अपनी ही अनकही में किसी अधबुने स्वेटर सी
क्या कभी टटोला है तुमने किसी ऐसे मन को
जिस पर टंगे हों उजले चाँद से पर्दे
और भीतर अमावस हो
अगर कर सको कुछ
तो इतना करना
एक सफ़ेद मुलायम ख़रगोश
उसकी गोद में रख देना
और कहना
कुछ देर के लिए भूल जाओ
कि तुम एक लड़की हो
भूल जाओ कि तुम्हे ही समेटना है सब कुछ
बस यही याद रखना कि
तुम न होती तो
ये मन नहीं होता
संवेदना नहीं होती
प्रेम नहीं होता
और मैं नहीं होता
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आरती

Thursday, December 10, 2015

इस तरह बचा रहता है जीवन

जिस तरह कवि अपने भीतर भरने देता है बेचैनी
उसी तरह प्रेम मेँ हारा हुआ शख़्स भरता है अपने भीतर
चू गयी आस्था के क़तरे
इस तरह बची रहती है कविता 
और इस तरह बचा रहता है जीवन
-आरती

Tuesday, December 1, 2015

बातें

जिस तरह नाटक के अंत में
मंच पर धीरे-धीरे घटती है रौशनी

उसी तरह ख़त्म हो रही हैं
तुम्हारी - मेरी बातें
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आरती