दिसंबर की सर्द रात में
लैंपपोस्ट के नीचे पड़ा लोहे का काला बेंच
लैंपपोस्ट से झरती मद्धम पीली रौशनी से
संवाद रचता है
वैसे ही जैसे
छत की रेलिंग सीढ़ियों से
चाय का ख़ाली कप मेज़पोश से
दरवाज़े पर चढ़ी सांकल ताले से
हरसिंगार धूल से
दरारें दीवार से
सेकंड की सुई मिनट की सुई से
मैं ख़ुद से
क्यूंकि अकेलापन कभी भी
अकेला नहीं होता
----------------
आरती
लैंपपोस्ट के नीचे पड़ा लोहे का काला बेंच
लैंपपोस्ट से झरती मद्धम पीली रौशनी से
संवाद रचता है
वैसे ही जैसे
छत की रेलिंग सीढ़ियों से
चाय का ख़ाली कप मेज़पोश से
दरवाज़े पर चढ़ी सांकल ताले से
हरसिंगार धूल से
दरारें दीवार से
सेकंड की सुई मिनट की सुई से
मैं ख़ुद से
क्यूंकि अकेलापन कभी भी
अकेला नहीं होता
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आरती