तुम्हारा लिखा पढ़ना
ख़ुद से बातें करने जैसा है
तुम्हे पढ़ते हुए 'मैं' और 'तुम' का भेद मिट जाता है
कुछ उगता है भीतर शायद एक नन्हीं-सी कोंपल
जो उदासी के भूरेपन को हरा कर देती है
प्रेम का सदाबहार फ़ूल अपनी महक को नहीं आने देता
मन की जिल्द से बाहर
किसी अनसुलझे दुःख की तरह बना रहता है सुख में भी अनवरत...
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आरती
ख़ुद से बातें करने जैसा है
तुम्हे पढ़ते हुए 'मैं' और 'तुम' का भेद मिट जाता है
कुछ उगता है भीतर शायद एक नन्हीं-सी कोंपल
जो उदासी के भूरेपन को हरा कर देती है
प्रेम का सदाबहार फ़ूल अपनी महक को नहीं आने देता
मन की जिल्द से बाहर
किसी अनसुलझे दुःख की तरह बना रहता है सुख में भी अनवरत...
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आरती