कभी सोचती हूँ क्यों पानी की तरह होता है
हम लड़कियों का मन
एक ज़रा सी फ़िक्र, छींट भर प्रेम
और दिखने लगता है उसमें उस शख़्स का प्रतिबिंब
आसमान के कैनवास पर घटते बनते बादलों की आकृतियों में
आँखें ढूंढ़ती है उसका चेहरा
इंतज़ार पुतलियों में नहीं मुट्ठी में भरती है
ताकि रेत की मानिंद बहता रहे वो क़तरा क़तरा
उँगलियों के बीच से
रात में किसी पहाड़ी पर बैठकर ढूंढती है
काली चादर में सबसे उजला जुगनू
और उसके परों में बांधती है उसके नाम की दुआ
पर वो जुगनू किसी और हथेली पर रख आता है उस दुआ को
आसमान का कैनवास एक बार फ़िर कोरा हो जाता है
पानी थिरकता है फ़िर भी प्रतिबिंब बना रहता है
ठहर जाता है हमेशा के लिए
हम लड़कियां क्यों भूल जाती हैं
आभासी और वास्तविक प्रतिबिंब का अंतर
---------------
आरती
हम लड़कियों का मन
एक ज़रा सी फ़िक्र, छींट भर प्रेम
और दिखने लगता है उसमें उस शख़्स का प्रतिबिंब
आसमान के कैनवास पर घटते बनते बादलों की आकृतियों में
आँखें ढूंढ़ती है उसका चेहरा
इंतज़ार पुतलियों में नहीं मुट्ठी में भरती है
ताकि रेत की मानिंद बहता रहे वो क़तरा क़तरा
उँगलियों के बीच से
रात में किसी पहाड़ी पर बैठकर ढूंढती है
काली चादर में सबसे उजला जुगनू
और उसके परों में बांधती है उसके नाम की दुआ
पर वो जुगनू किसी और हथेली पर रख आता है उस दुआ को
आसमान का कैनवास एक बार फ़िर कोरा हो जाता है
पानी थिरकता है फ़िर भी प्रतिबिंब बना रहता है
ठहर जाता है हमेशा के लिए
हम लड़कियां क्यों भूल जाती हैं
आभासी और वास्तविक प्रतिबिंब का अंतर
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आरती