कितने
प्यार
से
मुझे
देखती
है
जिसकी
आँखों
में
बहता
है
नीला
समंदर
सालों
का
फासला
है
हम
दोनों
के
बीच
फिर
भी
कुछ
है,
जो
बांधे
रखता
है
एक
सिरा
उसकी
कानी
ऊँगली
से
बंधा
दूसरा
मेरी
देह
से..
मैं
नज़रें
चुराकर
कुछ
टटोलता
हूँ
अपने
मन
के
झोले
में..
उँगलियों
के
पोर
से
कुछ
टकरा
जाता
है
मैं
अंदर
झाँक
कर
देखता
हूँ
एक
नन्ही
उम्मीद
मुस्कुराती
है...
- (आरती)
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