पहाड़ की बेरूख़ी
नदी के लिए सज़ा है…
प्रेम की।
प्रेम, जो नदी की अनुमति लेकर
उस तक नहीं पहुँचा था
नहीं जानती थी नदी
प्रेम के मायने
कैसे संभाले उसे....
कभी पास बिठाती
कभी लिटा देती
जैसे कोई पेंटिंग बना रही हो।
पर पहाड़ के लिए प्रेम का कैनवास…
कोरा है
और नदी के लिए
मीठा भ्रम।
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आरती
नदी के लिए सज़ा है…
प्रेम की।
प्रेम, जो नदी की अनुमति लेकर
उस तक नहीं पहुँचा था
नहीं जानती थी नदी
प्रेम के मायने
कैसे संभाले उसे....
कभी पास बिठाती
कभी लिटा देती
जैसे कोई पेंटिंग बना रही हो।
पर पहाड़ के लिए प्रेम का कैनवास…
कोरा है
और नदी के लिए
मीठा भ्रम।
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आरती
कल 18/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
Yash ji haunsla afzaai ka shukriya..
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