Monday, February 29, 2016

छूट गयी न मैँ तुमसे

तुम्हारी नज़र के धुँए मेँ
खो गया न मेरा अक्स
छूट गयी न मैँ तुमसे
जैसे रूठता है बचपन
टूट जाए बच्चे के हाथ से
उसका सबसे पसंदीदा खिलौना
ज़र्द हो जाए आसमान का माथा
भवोँ पर सिल जाए उदासी की सिलवट
गुम जाए ख़ुदा की आँखोँ से नूर
पांव तले रुल जाए आस कोई
ऐसे भी कोई किसी से
नज़रेँ फेरता है भला...
(आरती)

इंतज़ार का चाँद

तुमने फ़ूँक मारी और बुझा दिया 
आँखोँ की पुतलियोँ मेँ रखा 
उम्मीद का सूरज
पर माथे के ठीक बीच मेँ रखे
इंतज़ार के चाँद को
अमावस क्यूँ नहीँ बुझाती...
(आरती)

ओ मन!

ज़ुबाँ सिली थी तो सुकून था
ओ मन, सुई धागे का हुनर 
भूल गये क्या दर्ज़ी
-आरती

आवाज़ एहसास है

तकिए के बहुत पास रखी स्मृति भी
खो जाया करती है कभी
क्योँकि स्मृति का भाग्य है विस्मृत होना
मुझे आश्चर्य नहीँ कि किसी लम्हे तुम
भुला दो मुझे भी इसी तरह
इसलिए ज़रूरी है आवाज़ देना
आवाज़ एहसास है
जिसे सुना नहीँ
बस महसूसना होता है...
-आरती

मैँ अभिसारिका...

तुम्हारी कविता
एक पगडंडी की तरह प्रतीत होती है
जिसके सिरे पर खड़े तुम
पुकारते हो मुझे
फ़िर मैँ, मैँ नहीँ रहती 
रात के तीसरे पहर मेँ स्वप्न से उठकर
चल पड़ती हूँ तुम तक
तुम्हारे प्रेम मेँ डूबी
मैँ अभिसारिका...
(आरती)

प्रतीक्षा का छोर

मेरी प्रतीक्षा का छोर
तुम्हारी अबोधता से बंधा है
जो घटता नहीँ
बढ़ रहा है अनवरत
हरे से पीतवर्ण को अग्रसर
वसंत की तरह
पर तुम्हारे प्रेम मेँ मझे
रहना है यहीँ
अनंत मेँ अंत की तलाश की तरह
इसी यात्रा मेँ
जिसका कोई गंतव्य नहीँ
(आरती)

अधूरी ही रही हर प्रेम कविता

सबने प्रेम पर 
जाने क्या-क्या लिखा
फ़िर भी अधूरी ही रही
हर प्रेम कविता
(आरती)

प्रतीक्षारत

अनछुआ ही रहा 
उसका स्वर
रहे प्रतीक्षारत 
कर्ण मेरे...
-आरती

Saturday, February 13, 2016

प्रतीक्षा मेँ ज़िँदा उम्मीद...

आज मैँने चार पंक्तियाँ लिखीँ
मिटा दीँ
तीन अक्षरोँ मेँ पिरोया तुम्हारा नाम लिखा
हथेली से छिपा दिया
ढाई अक्षर लिखे
नाखून से खुरच दिए
इस मिटे,छिपे और खुरचे के बीच से उठकर
मैँने आईना देखा
अचानक मेरी शक्ल उस बच्चे की शक्ल मेँ बदल गयी
जो मुझे रेलवे प्रतीक्षालय मेँ मिला था
जिसकी पुतलियोँ मेँ ज़िँदा थी प्रतीक्षा
और प्रतीक्षा मेँ ज़िँदा थी उम्मीद...
(आरती)

Thursday, February 11, 2016

प्रेम का वितान

पहाड़
नदी के प्रेम का वितान है...
-आरती

मौन

मौन,
प्रेम का स्वर है।
(आरती)

अलविदा

अलविदा,
प्लेटफार्म की बेंच पर सिसकता 
पिट्ठू बैग है 
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आरती

फ़ासले की क़ुर्बत

मैंने किसी लम्हे तुम्हे
ख़ुद से इतना दूर किया कि 
फ़ासले की क़ुर्बत और बढ़ गयी