Wednesday, October 24, 2018

फिलर

रंगों से सने पैलेट को देख
उँगलियों को तलब लगती है
ब्रश थाम लेने की
कभी जब खनकने लगती हैं
विंड चाइम में पिरोई सीपियाँ
उतरने लगती है हथेली में
समंदर की वो पहली छुअन
ब्लैक कॉफ़ी में ब्रश डुबोकर
उस दिन उकेरा था अपना नाम
तुम्हारे कुर्ते पर
धुलेगा तो छूट जाएगा रंग
नाम न मिटेगा मन से...तुमने कहा था
कभी मुड़कर देखूं तो ये रंग,छुअन,तुम्हारा कहा
सब बेमानी लगता है
जैसे किसी कहानी में गढ़े हों किरदार बिना वजूद वाले
या रेडियो में समय भरने के लिए कोई फिलर
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आरती

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