एक उम्मीद बंधाई थी तुमने,
कहा था मेरे यकीन पर यकीन करो..
उस दिन सांझ भी ठहर गई थी,
तुम्हारे इंतज़ार में..
दरवाज़े पर दस्तक देती रही थी देर तक,
नाउम्मीदी की हवाएं..
पर मैंने भीतर न आने दिया,
कस कर बंद कर लिए थे किवाड़..
क्या तुम्हारा इंतज़ार ही मेरा काम है?
आज.. ग़लत ठहरा दो मुझे..
-(आरती)
shandar...
ReplyDeletebahut accha likhti hain aap arti ji
bus ek koshish
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअच्छा लिखती हैं, लिखती रहिये
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