Thursday, November 1, 2012

ग़लत ठहरा दो मुझे


एक उम्मीद बंधाई थी तुमने,
कहा था मेरे यकीन पर यकीन करो..

उस दिन सांझ भी ठहर गई थी,
तुम्हारे इंतज़ार में..

दरवाज़े पर दस्तक देती रही थी देर तक,
नाउम्मीदी की हवाएं..

पर मैंने भीतर न आने दिया,
कस कर बंद कर लिए थे किवाड़..

क्या तुम्हारा इंतज़ार ही मेरा काम है?
आज.. ग़लत ठहरा दो मुझे..

-(आरती)



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