Saturday, May 30, 2015

ओस भीगी-सी

तुम्हारे क़दमों को छूकर
जो ओस भीगी-सी ...
हुई थी तर
आज दूब की पलक पर टंगी
सिसक रही है ....
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आरती 

Friday, May 29, 2015

ये ना पूछना कि आँख नम क्योँ है
















ये ना पूछना कि आँख नम क्योँ है
बस जो ढलकने लगे गाल पर मोती
थाम लेना कानी उँगली पर अपनी..

(चित्र :आरती)

टिका है बस प्रेम…




















तुम्हारी हामी
प्रेम की श्वास पर टिका
आख़री आश्वासन …

आश्वासन टूटा
श्वास टूटी
टिका है बस
प्रेम…
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आरती 

Sunday, May 24, 2015

एक लड़की थी एक लड़की है

एक लड़की थी
तितली के कानों में बुदबुदाती
उसकी हथेली रंगीन हो जाती

पलकों से सपने आज़ाद करती
नीम अँधेरा जुगनू हो जाता है

नाक के नीचे की कांपती पत्ती खोलती
एक नज़्म गिरती महक उठती रात की रानी

एक लड़की है
तितली की पीठ दिखती है उसे अब
हथेली उसी की तरह खाली है

पलकें बेतरह चुभती हैं अब
सपनो की किरचों से

नीम अँधेरा पसरा रहता है दिन में भी
जुगनू को बोतल में बंद कर ले गया कोई राहगीर

पर रात की रानी अब भी महकती है
नज़्म अब भी गिरती है
बाहर नहीं
उसके भीतर
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आरती




  

Tuesday, May 19, 2015

लो बुझ गयी वो राख भी

लो बुझ गयी वो राख भी
जिसे सुलगाये रखा था मैंने
सीली रातों के अलाव से

आँखों की जेबों में जो तह कर रखे थे
मोम से नाज़ुक ख्वाब
रात पिघल गए सब

अब गालों पर सुर्ख गुलाब नहीं
तेरे नाम का लम्स नहीं
बस दहकते अंगारे हैं


चाँद अब टंगा रहता है
नीले आसमान की छत पर
मेरी खिड़की पर नहीं आता

तरस जाता है खिड़की का कांच
उतरता नहीं चांद का अक्स उसके चेहरे पर

नज़्में अब कागज़ पर नहीं उतरतीं
सुलगती रहती हैं जज़्बातों के हलक में


पूछना मत के कैसी हूँ
हाँ ज़िंदा हूँ
सांस चल रही है
उसे चलना ही है
बेशक थम जाएँ ये पाँव
तेरी यादों की देहलीज़ पर
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आरती



Sunday, May 17, 2015

वो नहीँ मरा

प्रेम हमेशा से स्वप्न रहा है..
तुमने कहा था
मैँने तुम्हेँ स्वप्न सा जिया
स्वप्न टूटा पर
बिखरी मैँ हूँ
मन के सबसे ऊपरी माले से
छलांग मारी है
प्रेम ने..
वो नहीँ मरा
मरी.. मैँ हूँ ..............
आरती

Friday, May 15, 2015

बहुत-सी जगहेँ हैँ जो देखी नहीँ गयीँ

बहुत-सी जगहेँ हैँ
जो देखी नहीँ गयीँ
जहाँ पहुँच मुश्किल नहीँ थीँ
पर जाया नहीँ गया
जैसे किसी प्रेमिका के खुले केशोँ मेँ
बंधा उसका तप
किसी सुकून देती कविता के भीतर
छिपी कवि की बेचैनी
जैसे आती-जाती साँस के रिदम पर
बजता कोई शोकगीत
किसी किताब के बीच के वो अनपढ़े पन्ने
जो पहले और आख़री पन्ने पढ़कर छोड़ दिये गये होँ
जैसे 'ठीक हूँ' की तसल्ली मेँ
कोई
निपट उदास श्वास...
(आरती)

पवित्र प्रस्ताव

कभी बिस्तर पर
सिलवट बन गिरती है
कभी तकिये पर चढ़ा
गिलाफ भिगोती है
दिवार पर टंगी मोनालिसा के
होँठ बन जाती है
काग़ज़ पर बिछ जाती है कभी
कोई टूटी हुई नज़्म बनकर
तो कभी पांव के नीचे चुभती है
हऴक से गिरे हर्फ बनकर
सुनो! तुम्हारी चुप्पी हर लम्हा
एक नया चेहरा पहने
रौँदती है अपने तल्वोँ के नीचे
प्रेम के सबसे पवित्र प्रस्ताव
(आरती)

झीनी-सी चादर

आँखोँ के भीतर
जो झीनी-सी चादर है न
स्वप्न की..
धुँधली ही सही
झिलमिलाना चाहती हूँ उस पर
तुम्हारी भीड़ का हिस्सा नहीँ
मैँ बस तुम्हारा अकेलेपन जीना चाहती हूँ
यथार्थ से परे एक मीठा भ्रम बनकर
उतरना चाहती हूँ कविता की तरह
तुम्हारे मन के पन्नोँ पर..
(आरती)

सबसे गहरे संवाद...

कहने-सुनने के बीच की जगहेँ
चुप्पियोँ के लिए बनीँ हैँ
ऐसे एकांत मेँ ही जन्मते हैँ
सबसे गहरे संवाद...
आरती

लड़की अपना पहला प्रेम कभी नहीँ भूलती

लड़की अपना पहला प्रेम कभी नहीँ भूलती
प्रेम, जिसे महसूसना
हथेली मेँ जुगनु बंद करने जैसा है
एक रौशनी एक नूर
अंदर और बाहर...
पर कभी ये रौशनी अलाव भी हो जाया करती है
फ़िर भी हथेली जलती नहीँ.. अमलतास के फ़ूल हो जाती है
तुम अपने नाम की ही तरह गहरे हो
मेरे लिए प्रेम की परिभाषा
आगाज़ और अंत तुम ही हो
(आरती)

रतजगी

रतजगी,
शिशु की आँखोँ का विस्मय
अनसुलझा..अटूट 
आरती

प्रेम का पर्याय

पीड़ा, प्रेम का पर्याय होती हैँ
जिनके होने मेँ ही
आप का होना है
आरती

गिरह

कुछ देर पहले
प्रेम ने करवट ली थी
रुह छिल गयी थी उसकी
अपनी ही बांधी गिरहोँ से...
आरती

ख़ालीपन

अपने भीतर का ख़ालीपन 
उसने अपने जूतोँ मेँ भर रखा है
जब चलती है,
फर्श पर निशान नहीँ छोड़ती
कहीँ उसका ये ख़ालीपन 
किसी और को ना छू जाए
(आरती)

टूटन नहीँ..जुड़ाव है

संवाद का टूटना
एक विकल्प है
जिसे हम चुनते हैँ 
या शायद हम चुने जाते हैँ इसके हाथोँ
इसकी टूटन हमारी टूटन नहीँ..जुड़ाव है
अबोले अनदेखे
तुम और मैँ का...
आरती

कभी जो खो जाऊँ मैँ..

कभी जो खो जाऊँ मैँ
ढूँढना मत मुझे
मेरी कविताओँ मेँ
न अधूरी कहानियोँ के खुले सिरे मेँ
न स्मृति के बुलबुले मेँ तैरती मिलुँगी
न यथार्थ और भ्रम के बीच झूलते किसी स्वप्न मेँ
मैँ मिलुँगी तुम्हेँ
तुम्हारी ही अनकही मेँ
(आरती)