Sunday, December 11, 2016

अबोला

उसे बोलने से परहेज़ नहीं था
चाह बस इतनी भर थी
कोई अबोला भी सुन सके
(आरती)

Tuesday, October 25, 2016

नाविक

आँख में सफ़ेद धुंध भरे
वो पीली धूप के स्वप्न बुनती है
पीड़ा के छिटके कणों को दोनों हाथों से समेटे
प्रेम के चेहरे पर जोड़ती जाती
हाँ और क्या करोंच सकी है वो उसमें
पीड़ा ही तो मन की प्रेरणा है
उसके और अपने बीच वो बस एक धुन सुन सकती है
माउथ ऑर्गन की उदास धुन
जो उसे किसी समुद्री यात्रा पर ले जाती है
उस क्षण उसके प्रेम का चेहरा नाविक बन जाता
जो दबे होठों से गुनगुनाता,"लड़की को नाविक से प्रेम है, है न!"
और वो पुतलियों में समंदर लिए अभिभूत हो जाती
कितना सुन्दर है ये दृश्य
प्रेम की सबसे सुखद अनुभूति
पर ये दृश्य स्मृति में टंका एक स्वप्न बन जाता है
जो उसने कभी जिया नहीं
उसे याद आता है उन आँखों में उसके लिए 'कुछ' नहीं
'कुछ' भी तो नहीं...
------------
आरती

Sunday, October 2, 2016

वो लम्स

कह दे और चुप भी रहे
खो गया जो आँखों का
वो लम्स लौटा दे
------------
आरती

Thursday, September 22, 2016

तुम्हे खुद ही रचना है अपना इतिहास

कस कर भींच लो गुलाबी मुट्ठी में
ख़्वाब कोई आसमानी
नाप लो तुम अपने छोटे पंखों से
धरा और नीले टुकड़े की दूरी
सुनो तलवों में जो चुभन-जलन है न
उसे मिटने-बुझने न देना
कंधे पर रखे किसी हाथ से
न हो जाना तुम आश्वासित
तुम्हे खुद ही बनना है अपना आश्वासन
देखो आँचल में बंधी गाँठ में तुम करुणा प्रेम संवेदना के साथ
रख लेना कुछ बीज आत्मसम्मान और निष्ठा के
ताकि बनी रहे भीतर की अग्नि में ताप
किसी की स्वीकृति पर नहीं निर्भर है तुम्हारा जीवन
ना किसी की अस्वीकृति पर तुम्हारा अंत
कि तुम्हे खुद ही रचना है अपना इतिहास
---------------------
आरती

ख़िज़ाँ

दरख़तों को चाह थी गुलों की
ख़िज़ाँ ने बो दिए काँटे
अब हथेलियाँ दुखती हैं
(आरती)

Monday, August 1, 2016

बेपर चिड़िया है प्रेम

कोरे कैनवस पर उड़ती
बेपर चिड़िया है प्रेम
जिसके लिए उसका कोरापन ही
एक मुकम्मल पेंटिंग है...
(
आरती)

Tuesday, July 5, 2016

एक बादल पानी वाला

अमलतास के झूमर से टपक कर 
कुछ बूँदें बारिश की 
भर जाती हैं भीतर भी... 
गीले मन से झरते हैं पीताम्बरी फ़ूल
कोई नहीं देख पाता उनका गिरना 
पांव के पीछे एड़ी से चिपके अकेलेपन के ठीक पास 
बनता है एक बादल पानी वाला 
जो फूटता नहीं है भरता रहता है 
हर गुज़रती सांस के साथ...
---------------
आरती

Saturday, June 25, 2016

दो किनारों के बीच का संवाद

रसोई के आले में रखकर भूल जाती हैं वो अक्सर
उदासी के मर्तबान को धूप दिखाना 
उन काँच के मर्तबानों में पकती है उदासी 
एक दिन देखना वो दरक जाएँगे और बह निकलेगी एक उफनती नदी 
उसे समंदर में समाने की चाह न होगी 
वो तो बस संवाद बन जाना चाहेगी
दो किनारों के बीच का...
------------------
आरती

Wednesday, June 22, 2016

एक और नज़्म....

बुझती हुई आँखों में जैसे 
मुस्कुराहट की डली है कोई 
पिघलती है कभी खारी होकर 
तो कभी ठहरे मर्ज़-सी...नब्जों में उतर आती है 
मैं पूछती हूँ आख़िर दर्द क्या है? तेरा मर्ज़ क्या है ? 
हर दफ़ा वो हौले से एक गेंद उछालती है
जो लुढ़क जाया करती है आँख के पाले से
और दर्ज मिलती है रुमाल के सफ़हे पर
एक और नज़्म....
गीले काजल की... 

------------
आरती

Wednesday, June 1, 2016

चुप्पी का अनुवाद

प्रेम में होना 
असल में उन्मुक्क्त होना है 
एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग की तरह...
जहाँ चीज़ों के ख़ाके तय नहीं होते 
दरअसल ख़ाके हमें बाँधते नहीं, तोड़ते हैं। 
टूटन को स्थगित करना, हमें ज़रा और तोड़ता है।
जैसे शब्दों के स्थगन से जन्मी चुप्पी को
होठों से चूमना और उसके मोह में पड़ जाना
हमें निर्मोह कर देता है, शब्दों से
एक प्रश्नचिन्ह के साथ :
क्या शब्दों में किया जा सकता है
चुप्पी का अनुवाद !
----------------
आरती

Friday, May 27, 2016

बस एक हल्की थपकन

मन बिल्ली के पंजों से खुरची
गेंद की तरह लगता है कभी
जिसे खुद आपने बिल्ली को थमाया हो
ताकि सुन्न पड़ चुकी वो चीज़ खुरचन से फ़िर जी उठे
हम जैसे अपनी ही क़ैद में गुज़र करते हैं
जबकि ये सज़ा भी हम ही ने मुक़र्रर की है
ये क़ैद, प्रेम की क़ैद है
'प्रेम' कितना छोटा-सा शब्द है
उसकी पीठ उतनी ही लम्बी
हज़ार खरोंचें और एक सख़्त पीठ
पर जानते हो बस एक हल्का बोसा
बस एक हल्की थपकन काफ़ी है इसपर
फ़िर मुड़कर देख पाने के लिए...
--------------
आरती



  

Saturday, May 21, 2016

जीवन की सांत्वना

अपने-अपने अँधेरों में गुम 
उजास की अास लिए
खुद के छितरे हुए आश्वासन को बटोरती
कविता कुछ और नहीं
जीवन की सांत्वना है... 
(आरती)

Monday, April 25, 2016

मेरे हिस्से की कहानी

बहुत - सा धुँआ और गर्द 
स्मृति की पीठ पर जमी खरोंच होती है 
जो आहिस्ता - आहिस्ता सोखती रहती है... 
उसकी तरलता 
ऐसे में मैं किसी द्वंद्व से गुज़रती हूँ 
जहाँ हर क्षण जीना, मरना ही है।
ढेर- सी चुप आवाज़ें भाप की तरह
मेरे भीतर उठती हैं
और फ़िर पर- कटे पक्षी की तरह
अपनी उड़ान खो देती हैं।
तुम, जिसको अब मेरी आवाज़ भी नहीं छूती
मैं चाहती हूँ तुम्हारे लिए अनजानी ही रह जाए
मेरे हिस्से की कहानी
--------------
आरती

Thursday, April 21, 2016

आदि और अंत से परे

तुम्हें हार चुकने के बाद भी
क्यूँ ये आँखें वो जगह ढूँढती हैं
जहाँ हमेशा से मैंने होना चाहा था...
जगहें तय होती हैं किरदारों की तरह
ये तय होना, प्रेम कहानियों के सिरे खोलता है
उन्हें आदि और अंत से परे ले जाकर...
-आरती

गति का ज्ञान

ज़मीन पर लट्टू घुमाता है वो 
कितने सधे हाथों से 
कि समय की फिरकी पर 
लिपटते जाते हैं दुःख - सुख के धागे 
दुःख के धागे माथे पर उभर आते हैं 
तो सुख के, होठों से चिपक जाते हैं 
इन धागों की गिनती मत करना 
कि नाप सको इनका उभरना और चिपकना 
हर किसी के बस में नहीं ये 
गति का ज्ञान...
--------------
आरती

Wednesday, April 20, 2016

रहने दो

सुनने की तलब कहने की रसम रहने दो
जो बात होंठों पर रुकी है वो बात रहने दो
-आरती

Thursday, April 7, 2016

इंतज़ार प्रेम के गर्भ मेँ फलता शिशु

अपनी दो हथेलियोँ से मैँने
अपनी दो आँखेँ ढंक ली हैँ
पर कुछ है जो अनवरत बढ़ता जाता है और दिखाई नहीँ देता
इंतज़ार, प्रेम के गर्भ मेँ फलता शिशु है।
(आरती)

Tuesday, March 29, 2016

प्रेम की पूर्णता

मछली ने कभी नहीं की थी परों की कामना 
उसने चाही थी नदी की गोद से 
बस एक लहर की धार। 
जिस तरह मुझे इस पूरी सृष्टि में से चाह थी
बस एक तुम्हारे प्रेम की। 
ये चाहना बुरी है, कोई भी चाहना बुरी है
कैसे विस्मृत हो गया था मुझे
अपूर्ण प्रेम ही प्रेम की पूर्णता है...
----------------
आरती

Sunday, March 27, 2016

दो समानांतर बिंदु

तुम्हारे स्पर्श की भाषा अदृश्य है और स्पर्शीय भी
क्यूंकि वो देह से नहीं, शब्द से जुड़ी है
तुम और मैं जैसे अक्ष पर स्थापित दो समानांतर बिंदु हों
एक - दूसरे की आभा से रोशन
तो कभी आरोह अवरोह में स्थापित
ताल - मेल की तरह तुम और मैं
मेरी यात्रा तुम तक और तुम्हारी मुझ तक
इस 'मेरे' में बेहद महीन स्त्रोत मैं हूँ बाक़ी तुम
-----------------
आरती

Wednesday, March 23, 2016

मेरे होने की ताक़ीद

मैंने बहुत करीब से देखा है 
मन पर चढ़ी उदासी की परत को 
जो कभी महीन तो कभी गाढ़ी हो जाया करती है 
जिसे मैंने कभी खुरचा नहीं 
क्यूंकि इससे तरलता बनी रहती है,संवेदना के रूप में 
ये उदासियाँ, प्रेम के पैलेट का ही एक मटमैला रंग है
जो छूटते नहीं छूटता
पर आज मैं लौटा देना चाहती
हूँ
वो सब जो मुझे तुमसे मिला है
तरलता, संवेदना, उदासी, छटपटाहट, उम्मीद, प्रेम, मैं
और तुम्हारा इंतज़ार भी
जो पूरा लौ
टाने के बाद भी मुझमें कुछ बचा ही रहेगा
मैं जा रही हूँ और जाने से पहले निश्चिन्त हो जाना चाहती हूँ
कि मेरी कोई भी चीज़ यहाँ बाकी न रहे
हो सके जिनसे मेरे कभी होने की ताक़ीद।
------------------
आरती

My Frame

When in pain, I often choose to smile
But in solitude, I refuse to come out of my frame
-Arti

तुम्हारा ख़्याल

मैँने मूढ़े से उठकर
उसका माथा चूमा था
तुम नहीँ तुम्हारा ख़्याल था
जिसे कुछ फुरसत थी
-आरती

Coming soon


मन समझती हो तुम!

मन समझती हो तुम!
उसने हसरत भरी निगाह से पूछा
नीली चिड़िया कुछ देर तकती रही
फ़िर चोँच से मिट्टी खोदने लगी
अब मिट्टी नम थी और चिड़िया की आँख भी
इस बार चिड़िया ने मिट्टी से पूछा था वही सवाल...
आरती

पाबंद

तुमने रंग देखे, उसमें पाबंद उदासी नहीं
तुमने वही देखा
जो तुम देखना चाहते थे
-----------
आरती 

टीस मेँ होना ही प्रेम मेँ होना है

प्रेम मेँ होना कितना सुखद है 
ये सुख, पहाड़ की उतरन पर खड़े होने जैसा होता है
जबकि आप जानते हैँ कि नीचे दुख की ओर आना ही है
और ये बात टीस की तरह बनी रहती है सुख मेँ भी
असल मेँ इस टीस मेँ होना ही
प्रेम मेँ होना है
(आरती)

आख़री सांस

मेरी आवाज़ हर दफा तुम्हारे कंधे से टकराकर 
लौट आती है वापिस
फ़िर किसी शून्य मेँ गुम हो जाने के लिए
मुझे यक़ीन है तुम कभी नहीँ पुकारोगे वो नाम
जो तुम्हारी स्मृति मेँ कब का हो चुका दफ्न
प्रेम की सांस चाँद के घटते- बढ़ते क्रम मेँ चलती है
शायद तुम सुन न पाओ
जब वो भरे अपनी आख़री सांस...
(आरती)

प्रतीक्षा की दूब

संभावना के पोरोँ पर उगती है
प्रतीक्षा की दूब
और फ़िर 
चिपक जाती है आँख की कोर से 
ओस बनकर...
(आरती)

आसान न होगा तुम्हारा विदा लेना...

वो आसमां कितना नीला होगा
जहाँ तुमने टिकाई होगी कुछ देर अपनी आँखे
वो मिट्टि ज़रा कुछ और नम हुई होगी
जहाँ रखे होँगे तुमने अपने पांव
सड़क पर बिछे पत्ते
फुसफुसाते होँगे हौले से तुम्हारी लिखी कविता कोई
वो नीलापन, वो नमी, वो फुसफुसाहट
मैँने रख ली अपनी कविता मेँ
अब आसान न होगा तुम्हारा
विदा लेना...
(आरती)

Monday, February 29, 2016

छूट गयी न मैँ तुमसे

तुम्हारी नज़र के धुँए मेँ
खो गया न मेरा अक्स
छूट गयी न मैँ तुमसे
जैसे रूठता है बचपन
टूट जाए बच्चे के हाथ से
उसका सबसे पसंदीदा खिलौना
ज़र्द हो जाए आसमान का माथा
भवोँ पर सिल जाए उदासी की सिलवट
गुम जाए ख़ुदा की आँखोँ से नूर
पांव तले रुल जाए आस कोई
ऐसे भी कोई किसी से
नज़रेँ फेरता है भला...
(आरती)

इंतज़ार का चाँद

तुमने फ़ूँक मारी और बुझा दिया 
आँखोँ की पुतलियोँ मेँ रखा 
उम्मीद का सूरज
पर माथे के ठीक बीच मेँ रखे
इंतज़ार के चाँद को
अमावस क्यूँ नहीँ बुझाती...
(आरती)

ओ मन!

ज़ुबाँ सिली थी तो सुकून था
ओ मन, सुई धागे का हुनर 
भूल गये क्या दर्ज़ी
-आरती

आवाज़ एहसास है

तकिए के बहुत पास रखी स्मृति भी
खो जाया करती है कभी
क्योँकि स्मृति का भाग्य है विस्मृत होना
मुझे आश्चर्य नहीँ कि किसी लम्हे तुम
भुला दो मुझे भी इसी तरह
इसलिए ज़रूरी है आवाज़ देना
आवाज़ एहसास है
जिसे सुना नहीँ
बस महसूसना होता है...
-आरती

मैँ अभिसारिका...

तुम्हारी कविता
एक पगडंडी की तरह प्रतीत होती है
जिसके सिरे पर खड़े तुम
पुकारते हो मुझे
फ़िर मैँ, मैँ नहीँ रहती 
रात के तीसरे पहर मेँ स्वप्न से उठकर
चल पड़ती हूँ तुम तक
तुम्हारे प्रेम मेँ डूबी
मैँ अभिसारिका...
(आरती)

प्रतीक्षा का छोर

मेरी प्रतीक्षा का छोर
तुम्हारी अबोधता से बंधा है
जो घटता नहीँ
बढ़ रहा है अनवरत
हरे से पीतवर्ण को अग्रसर
वसंत की तरह
पर तुम्हारे प्रेम मेँ मझे
रहना है यहीँ
अनंत मेँ अंत की तलाश की तरह
इसी यात्रा मेँ
जिसका कोई गंतव्य नहीँ
(आरती)

अधूरी ही रही हर प्रेम कविता

सबने प्रेम पर 
जाने क्या-क्या लिखा
फ़िर भी अधूरी ही रही
हर प्रेम कविता
(आरती)

प्रतीक्षारत

अनछुआ ही रहा 
उसका स्वर
रहे प्रतीक्षारत 
कर्ण मेरे...
-आरती

Saturday, February 13, 2016

प्रतीक्षा मेँ ज़िँदा उम्मीद...

आज मैँने चार पंक्तियाँ लिखीँ
मिटा दीँ
तीन अक्षरोँ मेँ पिरोया तुम्हारा नाम लिखा
हथेली से छिपा दिया
ढाई अक्षर लिखे
नाखून से खुरच दिए
इस मिटे,छिपे और खुरचे के बीच से उठकर
मैँने आईना देखा
अचानक मेरी शक्ल उस बच्चे की शक्ल मेँ बदल गयी
जो मुझे रेलवे प्रतीक्षालय मेँ मिला था
जिसकी पुतलियोँ मेँ ज़िँदा थी प्रतीक्षा
और प्रतीक्षा मेँ ज़िँदा थी उम्मीद...
(आरती)

Thursday, February 11, 2016

प्रेम का वितान

पहाड़
नदी के प्रेम का वितान है...
-आरती

मौन

मौन,
प्रेम का स्वर है।
(आरती)

अलविदा

अलविदा,
प्लेटफार्म की बेंच पर सिसकता 
पिट्ठू बैग है 
-----------
आरती

फ़ासले की क़ुर्बत

मैंने किसी लम्हे तुम्हे
ख़ुद से इतना दूर किया कि 
फ़ासले की क़ुर्बत और बढ़ गयी

Tuesday, January 12, 2016

मेरे जीवन का सारांश

मेरे जीवन में तुम्हारी रिक्तता
यही है मेरे लिए प्रेम का अर्थ
और मेरे जीवन का सारांश भी
-----------
आरती

तुम्हारी प्रतीक्षा अपेक्षित है

जब तक स्वयं तुम्हे प्रेम का बोध न हो
तुम्हारी प्रतीक्षा अपेक्षित है...
---------
आरती

Wednesday, January 6, 2016

सुर्ख गुलाब तुम्हारी शक़्ल का

मैंने किसी लम्हे तुम्हे
ख़ुद से इतना दूर किया कि
फ़ासले की क़ुर्बत और बढ़ गयी
वो जो एक नन्ही सी बात
अटकी पड़ी थी कब से हलक में
तालु से ज़रा और चिपक गयी

खीसे में रखी थी ज़रा मोड़कर याद तुम्हारी
सोचा था गुज़र बसर हो जाएगी
जाने कब ज़रा और मुड़ तुड़ गयीं
अब बस कुछ सिलवटें है बाक़ी
और एक बोसा है किसी बीज सा
कि रह रह कर उग आता है मेरी हथेली पर
एक सुर्ख गुलाब तुम्हारी शक़्ल का...
-----------------
आरती

Monday, January 4, 2016

समय की भिंची मुट्ठियाँ

जब आप भरे होते हैं रिक्तता से
और खाली होती है समय की भिंची मुट्ठियाँ
तब उससे बंधी हुई आपकी आश्वस्ति गिरती है
उस बच्चे की आँख से गिरते आंसू की तरह
जिसके होंठ कसकर बंद हैं
इसलिए नहीं कि वो बोलना नहीं जानता
बल्कि इसलिए कि वो बोलना नहीं चाहता
--------------------
आरती

 

Sunday, January 3, 2016

जन्मदिन मुबारक तुम्हे

मेरे जीवन में तुम्हारी उपस्थिति उसी तरह है
जैसे प्राण वायु का होना, पर न दिखना
इसलिए तुम्हारी अनुपस्थिति और उपस्थिति का एकसाथ होना
असाधारण नहीं है...
मेरे लिए प्रेम का बोध हो तुम
पर प्रेम की परिभाषा
आदि और अंत तय नहीं होते
और यही उसकी विशिष्टता भी है
तुम्हारा जन्म मेरे लिए
मेरे ईश का जन्म है
जिसके लिए आज मेरी आँखें ममत्व से भरी हैं
और शब्दकोष खाली...
कुछ न कहकर बस इतना ही कह सकूंगी
"जन्मदिन मुबारक तुम्हे!"
-------------
आरती
२९/१२/२०१५

वो जो मुझमेँ कुछ अधूरा है

वो जो मुझमेँ कुछ अधूरा है
क्या तुझमेँ वो मुकम्मल है
(आरती)