अमलतास के झूमर से टपक कर
कुछ बूँदें बारिश की
भर जाती हैं भीतर भी...
गीले मन से झरते हैं पीताम्बरी फ़ूल
कोई नहीं देख पाता उनका गिरना
पांव के पीछे एड़ी से चिपके अकेलेपन के ठीक पास
बनता है एक बादल पानी वाला
जो फूटता नहीं है भरता रहता है
हर गुज़रती सांस के साथ...
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आरती
कुछ बूँदें बारिश की
भर जाती हैं भीतर भी...
गीले मन से झरते हैं पीताम्बरी फ़ूल
कोई नहीं देख पाता उनका गिरना
पांव के पीछे एड़ी से चिपके अकेलेपन के ठीक पास
बनता है एक बादल पानी वाला
जो फूटता नहीं है भरता रहता है
हर गुज़रती सांस के साथ...
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आरती