Monday, October 21, 2013

ये मैं ही तो हूँ


 

एक थका मांदा रस्ता
मेरे हलक़ से होकर गुज़रता है

आया कहाँ है मालूम नहीं
पर मिलता है जा कर
मेरे धड़ के बायीं  ओर बनी
अँधेरी कोठर में....

कोई मुसाफिर कोई राहगीर
नहीं दिखता उस पर चलता हुआ

पर दो पैर दिखते है
बनते-मिटते, मिटते-बनते

आखिर कौन है वो
जो आइना पहने फिरता है

हाँ ये मैं ही तो हूँ
जो ख़ुद से चलकर खुद तक पहुँचता हूँ

जो ख़ुद से चलकर खुद तक पहुँचता हूँ........


-(आरती)

6 comments:

  1. आपको दीप पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ !

    कल 25/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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