प्रेम के पोरों का स्पर्श उसका स्वप्न है
वो कुतरती रहती समय की फांक को
गिलहरी की तरह थोड़ा-थोड़ा
फिर भी उसकी पुतलियों की उदासी
विस्तृत होती जाती
सांसों के स्पंदन पर थिरकती रहती
निरंतर...उसकी आकुलता
वो प्रार्थनाओं के द्वार पर सीली आँखें लिए
बुदबुदाती रहती :
'उसकी प्रतीक्षा को विराम मिले'
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आरती