Tuesday, March 29, 2016

प्रेम की पूर्णता

मछली ने कभी नहीं की थी परों की कामना 
उसने चाही थी नदी की गोद से 
बस एक लहर की धार। 
जिस तरह मुझे इस पूरी सृष्टि में से चाह थी
बस एक तुम्हारे प्रेम की। 
ये चाहना बुरी है, कोई भी चाहना बुरी है
कैसे विस्मृत हो गया था मुझे
अपूर्ण प्रेम ही प्रेम की पूर्णता है...
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आरती

Sunday, March 27, 2016

दो समानांतर बिंदु

तुम्हारे स्पर्श की भाषा अदृश्य है और स्पर्शीय भी
क्यूंकि वो देह से नहीं, शब्द से जुड़ी है
तुम और मैं जैसे अक्ष पर स्थापित दो समानांतर बिंदु हों
एक - दूसरे की आभा से रोशन
तो कभी आरोह अवरोह में स्थापित
ताल - मेल की तरह तुम और मैं
मेरी यात्रा तुम तक और तुम्हारी मुझ तक
इस 'मेरे' में बेहद महीन स्त्रोत मैं हूँ बाक़ी तुम
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आरती

Wednesday, March 23, 2016

मेरे होने की ताक़ीद

मैंने बहुत करीब से देखा है 
मन पर चढ़ी उदासी की परत को 
जो कभी महीन तो कभी गाढ़ी हो जाया करती है 
जिसे मैंने कभी खुरचा नहीं 
क्यूंकि इससे तरलता बनी रहती है,संवेदना के रूप में 
ये उदासियाँ, प्रेम के पैलेट का ही एक मटमैला रंग है
जो छूटते नहीं छूटता
पर आज मैं लौटा देना चाहती
हूँ
वो सब जो मुझे तुमसे मिला है
तरलता, संवेदना, उदासी, छटपटाहट, उम्मीद, प्रेम, मैं
और तुम्हारा इंतज़ार भी
जो पूरा लौ
टाने के बाद भी मुझमें कुछ बचा ही रहेगा
मैं जा रही हूँ और जाने से पहले निश्चिन्त हो जाना चाहती हूँ
कि मेरी कोई भी चीज़ यहाँ बाकी न रहे
हो सके जिनसे मेरे कभी होने की ताक़ीद।
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आरती

My Frame

When in pain, I often choose to smile
But in solitude, I refuse to come out of my frame
-Arti

तुम्हारा ख़्याल

मैँने मूढ़े से उठकर
उसका माथा चूमा था
तुम नहीँ तुम्हारा ख़्याल था
जिसे कुछ फुरसत थी
-आरती

Coming soon


मन समझती हो तुम!

मन समझती हो तुम!
उसने हसरत भरी निगाह से पूछा
नीली चिड़िया कुछ देर तकती रही
फ़िर चोँच से मिट्टी खोदने लगी
अब मिट्टी नम थी और चिड़िया की आँख भी
इस बार चिड़िया ने मिट्टी से पूछा था वही सवाल...
आरती

पाबंद

तुमने रंग देखे, उसमें पाबंद उदासी नहीं
तुमने वही देखा
जो तुम देखना चाहते थे
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आरती 

टीस मेँ होना ही प्रेम मेँ होना है

प्रेम मेँ होना कितना सुखद है 
ये सुख, पहाड़ की उतरन पर खड़े होने जैसा होता है
जबकि आप जानते हैँ कि नीचे दुख की ओर आना ही है
और ये बात टीस की तरह बनी रहती है सुख मेँ भी
असल मेँ इस टीस मेँ होना ही
प्रेम मेँ होना है
(आरती)

आख़री सांस

मेरी आवाज़ हर दफा तुम्हारे कंधे से टकराकर 
लौट आती है वापिस
फ़िर किसी शून्य मेँ गुम हो जाने के लिए
मुझे यक़ीन है तुम कभी नहीँ पुकारोगे वो नाम
जो तुम्हारी स्मृति मेँ कब का हो चुका दफ्न
प्रेम की सांस चाँद के घटते- बढ़ते क्रम मेँ चलती है
शायद तुम सुन न पाओ
जब वो भरे अपनी आख़री सांस...
(आरती)

प्रतीक्षा की दूब

संभावना के पोरोँ पर उगती है
प्रतीक्षा की दूब
और फ़िर 
चिपक जाती है आँख की कोर से 
ओस बनकर...
(आरती)

आसान न होगा तुम्हारा विदा लेना...

वो आसमां कितना नीला होगा
जहाँ तुमने टिकाई होगी कुछ देर अपनी आँखे
वो मिट्टि ज़रा कुछ और नम हुई होगी
जहाँ रखे होँगे तुमने अपने पांव
सड़क पर बिछे पत्ते
फुसफुसाते होँगे हौले से तुम्हारी लिखी कविता कोई
वो नीलापन, वो नमी, वो फुसफुसाहट
मैँने रख ली अपनी कविता मेँ
अब आसान न होगा तुम्हारा
विदा लेना...
(आरती)