Sunday, December 3, 2017

जो छूटा है ...

बहुत बार हम तेज़ चलते हैं
और भूल जाते हैं रुकना
जब कभी याद आता है रुकना
तो अक्सर चलना ही भुला देते हैं
कभी चलो, तो ज़रा रुक के चलो न
ज़रा ज़रा चलना , ज़रा ज़रा रुकना
पता है, इस चलने और रुकने के बीच
जो छूटा है फ़िर समेट भी सकते हैं...
-------------
आरती

Tuesday, August 29, 2017

अनवरत

तुम्हारा लिखा पढ़ना 
ख़ुद से बातें करने जैसा है
तुम्हे पढ़ते हुए 'मैं' और 'तुम' का भेद मिट जाता है 
कुछ उगता है भीतर शायद एक नन्हीं-सी कोंपल 
जो उदासी के भूरेपन को हरा कर देती है 
प्रेम का सदाबहार फ़ूल अपनी महक को नहीं आने देता
मन की जिल्द से बाहर
किसी अनसुलझे दुःख की तरह बना रहता है सुख में भी अनवरत...
-------------------
आरती

Monday, July 31, 2017

याद

जहाँ - जहाँ भी याद रखी है 
वहाँ - वहाँ जमा है एक बादल...पानी वाला 
------------
आरती

Tuesday, July 11, 2017

स्वप्नयात्रा

समय के परों पर तैरते 'तुम'
कुछ देर ठहरे थे मेरे पास
कुछ कहा था तुमने या शायद तुम्हारा 'चुप' ही बोला था :
"तुम्हारा कुछ न कहना, सब कहना है 
मेरा कुछ न सुनना, सब सुनना"
प्रेम है... यहीं है... दो 'मन' के बीच
अदृश्य में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराता...
प्रेम का मर्म शायद यही है
स्वप्न और यथार्थ से परे उस क्षण में
मैंने बंद पलकों से छुए थे तुम्हारे माथे के टाँके...
ब्राइल लिपि की तरह
ठीक उसी क्षण आरंभ हुई एक आंसू की स्वप्नयात्रा
जो भोर में बारिश हो गया था।
-----------------------
आरती

Wednesday, June 7, 2017

दो मन

दो मन के सिरे बंधे हैं 
एक चुप की तार से
वो कभी नहीं कह पाएगी वो कभी नहीं सुन पाएगा 
दोनों कविता में जीते हैं कहते हैं 
दरअसल कविता में जीना ही उनका स्वभाव है 
वायलिन के मध्य लय फिर द्रुत लय पर थिरकते हैं उदासी के पांव
जो गेंद बनकर टप्पे खाती रहती मन के दोनों पालों के बीच
ध्यान से देखो तो कुछ बंधा दिखेगा चेहरे पर टंगी
उन बादामी आँखों में....
एक में बारिशें दूसरी में सवाल :
क्या कभी पढ़ सकोगे वो पनीली आँखें !
------------------------
आरती

Sunday, February 5, 2017

विराम

प्रेम के पोरों का स्पर्श उसका स्वप्न है
वो कुतरती रहती समय की फांक को
गिलहरी की तरह थोड़ा-थोड़ा
फिर भी उसकी पुतलियों की उदासी
विस्तृत होती जाती
सांसों के स्पंदन पर थिरकती रहती
निरंतर...उसकी आकुलता
वो प्रार्थनाओं के द्वार पर सीली आँखें लिए
बुदबुदाती रहती :
'उसकी प्रतीक्षा को विराम मिले'
-----------
आरती

Friday, February 3, 2017

Now you can wear my artwork

My latest collection on Vida.
Now you can wear my artwork.:)
Need your blessings friends
Gratitude :)
Do visit my page:https://shopvida.com/collections/arti-varma

Tuesday, January 3, 2017

आलाप

उसे कहना नहीं आया
वो महसूसती और लिखती।
वो पढ़ता, महसूसता और
चुप रहता।
मौन के इस आलाप में
शब्द अपनी ध्वनियाँ तलाशते रहते
-----------
आरती