Tuesday, April 22, 2014

आस का एक सितारा




आईने में दो अक्स
अब नहीं दिखा करते एक साथ..

एक चेहरा ज़मीन पर पड़ा रहता है
मिट्टी में लतपथ

दूसरा रेल की पटरियों पर
दिन गिना करता है

एक चेहरे की एक जोड़ी आँख
टिकी रहती है देहरी पर

दरवाज़े पर मूँह लटकाये लटकी रहती है
इंतज़ार की सांकल
उस हथेली का स्पर्श पाने को

चमकीली आस का एक सितारा
टाक गया था दूसरा चेहरा

एक चेहरे की दो भौहों के ठीक...
बीचों-बीच

 -आरती
२२/४/१४ 

Tuesday, April 8, 2014

चुप्पियाँ

लफ़्ज़ ढूंढते हुए अक्सर
चुप्पियाँ हाथ लगती हैं.…

होंठों पर बिछी
सूखी पपड़ियों की शक्ल में

आँखों की  कोर में अटके
मोती की शक्ल में

भरी महफ़िल में मेज़ पर सजे
ख़ाली गिलास की शक्ल में

बरामदे में हिलती आराम कुर्सी
दीवार पर टंगी तस्वीर की शक्ल में

पांव से खुर्ची मिटटी
अलमारी में घुंघरुओं की शक्ल में

या फ़िर
मुरझाए चेहरे पर
कान-से-कान तक फ़ैली मुस्कान की शक्ल में

लफ़्ज़ ढूंढते हुए अक्सर
चुप्पियाँ हाथ लगती हैं.…

-आरती
(८/४/१४)




Tuesday, April 1, 2014




दो अलग-अलग शहरों को
एक सड़क जोड़ती है
उम्मीद की..

तुम्हारे शहर में जब उगता है सूरज
तब धूप बिछती है मेरे शहर में..

तुम्हें ऊँचाई पसंद है न
पर्वत-सी विशाल…
मेरी जड़ें गहरी जमी हैं
ज़मीन में
 
पर दोनों का रंग एक ही तो है
भूरा रंग....पर्वत और मिटटी का

आँखों से गिरे मोती का
चेहरे पे बिखरी मुस्कान का
तुम्हारे और मेरे प्रेम का

क्या शहरों का फासला
हमारा ही बनाया है??

काश!! कि तुम सुन पाते
बातों की बंद तहों में मेरी
ख़ामोशी को.…
 
काश!! कि मैं पढ़ पाती
तुम्हारी कही में छिपी
अनकही को…

जानती हूँ तुम तक पहुंचना
आसान नहीं

पर वादा करो…
जो एक सीढ़ी मैं चढ़ूँ
एक सीढ़ी उतर आना तुम...

-आरती
(२/४/१४)