आईने में दो अक्स
अब नहीं दिखा करते एक साथ..
एक चेहरा ज़मीन पर पड़ा रहता है
मिट्टी में लतपथ
दूसरा रेल की पटरियों पर
दिन गिना करता है
एक चेहरे की एक जोड़ी आँख
टिकी रहती है देहरी पर
दरवाज़े पर मूँह लटकाये लटकी रहती है
इंतज़ार की सांकल
उस हथेली का स्पर्श पाने को
चमकीली आस का एक सितारा
टाक गया था दूसरा चेहरा
एक चेहरे की दो भौहों के ठीक...
बीचों-बीच
-आरती
२२/४/१४