Thursday, September 22, 2016

तुम्हे खुद ही रचना है अपना इतिहास

कस कर भींच लो गुलाबी मुट्ठी में
ख़्वाब कोई आसमानी
नाप लो तुम अपने छोटे पंखों से
धरा और नीले टुकड़े की दूरी
सुनो तलवों में जो चुभन-जलन है न
उसे मिटने-बुझने न देना
कंधे पर रखे किसी हाथ से
न हो जाना तुम आश्वासित
तुम्हे खुद ही बनना है अपना आश्वासन
देखो आँचल में बंधी गाँठ में तुम करुणा प्रेम संवेदना के साथ
रख लेना कुछ बीज आत्मसम्मान और निष्ठा के
ताकि बनी रहे भीतर की अग्नि में ताप
किसी की स्वीकृति पर नहीं निर्भर है तुम्हारा जीवन
ना किसी की अस्वीकृति पर तुम्हारा अंत
कि तुम्हे खुद ही रचना है अपना इतिहास
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आरती

ख़िज़ाँ

दरख़तों को चाह थी गुलों की
ख़िज़ाँ ने बो दिए काँटे
अब हथेलियाँ दुखती हैं
(आरती)