Tuesday, October 25, 2016

नाविक

आँख में सफ़ेद धुंध भरे
वो पीली धूप के स्वप्न बुनती है
पीड़ा के छिटके कणों को दोनों हाथों से समेटे
प्रेम के चेहरे पर जोड़ती जाती
हाँ और क्या करोंच सकी है वो उसमें
पीड़ा ही तो मन की प्रेरणा है
उसके और अपने बीच वो बस एक धुन सुन सकती है
माउथ ऑर्गन की उदास धुन
जो उसे किसी समुद्री यात्रा पर ले जाती है
उस क्षण उसके प्रेम का चेहरा नाविक बन जाता
जो दबे होठों से गुनगुनाता,"लड़की को नाविक से प्रेम है, है न!"
और वो पुतलियों में समंदर लिए अभिभूत हो जाती
कितना सुन्दर है ये दृश्य
प्रेम की सबसे सुखद अनुभूति
पर ये दृश्य स्मृति में टंका एक स्वप्न बन जाता है
जो उसने कभी जिया नहीं
उसे याद आता है उन आँखों में उसके लिए 'कुछ' नहीं
'कुछ' भी तो नहीं...
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आरती

Sunday, October 2, 2016

वो लम्स

कह दे और चुप भी रहे
खो गया जो आँखों का
वो लम्स लौटा दे
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आरती