Monday, April 20, 2015

मेरा लिखा मुक़म्मल नहीं

ठहरे पानी में
उँगलियाँ फिरा देने से
नहीं टूटता मौन
अनगिनत समंदर भी 
नहीं माप सकते
प्रेम की गहराई को
तुम्हारे नाम के तीन अक्षर
मेरे लिए प्रेम का विस्तार हैं
छोटे-से ख़ाके में सिमटी हुई सृष्टि है
मेरा लिखा मुक़म्मल नहीं
प्रेम पर कुछ भी लिखा मुक़म्मल नहीं
जब तक वो छू न पाए
तुम्हारे अंतस को…
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आरती

ख़ुशबू..प्रेम की

मैँ वो ख़ुशबू ढूँढती रही
जो उसने हर्फ मेँ कभी
बांधी ही नहीँ
ख़ुशबू..प्रेम की
आरती

ये कैसी नाराज़गी है

ये कैसी नाराज़गी है उससे..
ईश्वर की कलाई पर बांध ही आती है हर रोज़
उसके नाम इक दुआ
(आरती)

Friday, April 17, 2015

आँसू

टूटते तारे की आँख से पिघलता 
चाँद है..
आँसू
(आरती)

प्रेमिका का रुदन

प्रेम  के मोरपंख पर
चमकीली मख़मली धारियाँ
आस्था की पीठ पर आयीं खरोंचें हैं
ईश्वर के मौन को तोड़ती
उन अनगिनत घंटियों का
मंत्रोच्चारण है
जो फ़ूटा हो किसी प्रेमिका के रुदन से…
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आरती  

Saturday, April 11, 2015

हर्फ हो जाना चाहती हूँ

जानती हूँ तुम्हारी लिखी नज़्मोँ मेँ 
मेरा चेहरा नहीँ..
मैँ बस तुम्हारे पन्नोँ पर बिखरे..
हर्फ हो जाना चाहती हूँ..
-आरती

कुछ नदियोँ को समंदर नसीब नहीँ होते

तुम समंदर थे
इसीलिए मैँने चुना नदी होना
भूल गई थी मैँ
कुछ नदियोँ को समंदर नसीब नहीँ होते..
(आरती)

तुम्हेँ पढ़ना

तुम्हेँ पढ़ना,
हाथ पर बैठी तितली के रंग 
र्स्पश करने जैसा है..
-आरती

Monday, April 6, 2015

भीतर के सभी सूर्य

जाने कब ये आँखें अपनी नमी खो दें 
इंतज़ार थक कर गिर जाये अपने ही घुटनों पर 
जाने कब होठों पर जमी अनकही झर जाए 
रिसने लगे पोर पोर से समुद्र
जाने कब छिन जाए कविता से शब्द 
शब्द से अहसास....अहसास से नमी
जाने कब ईश्वर की गोद सूनी हो जाए प्रेम से
आदम की प्रार्थनाएँ अनसुनी
जाने कब प्रेम से खो जाएँ अपनी अंतहीन गहराईयाँ
खो दूँ मैं तुम्हे अपने स्वप्न से भी
उससे पहले मैं हाथ पर रख कर फूंक देना चाहूँगी
अपनी आखरी सांस
बुझा देना चाहूँगी अपने भीतर के सभी सूर्य …
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आरती

क्या प्रेम दो लोग करते हैँ?

क्या प्रेम दो लोग करते हैँ?
उसने पूछा था
मैँ चुप रही
कैसे कहती कि
प्रेम दो लोग नहीँ..
दो मन करते हैँ
प्रार्थना मेँ जुड़े दो हाथोँ की तरह..
जब दो मन बंध जाएँ
और सिरा ईश्वर की हथेली पर रख दिया जाए
किसी दुआ की तरह..
जो बंध कर भी खुला रहे
खुल कर भी बंधा रहे..
(आरती)

रुदन

समंदर से लौटते वक्त
पांव की उँगलियोँ के बीच
जो रेत लिपटी रह जाती है
क्या कभी सुना है उसका रुदन..
-आरती

खोयी आस्था

खो जाऊँगी एक रोज़ मैं भी
जैसे खोती है एक आहत प्रेमिका
प्रेम पर से आस्था
क्या ढूंढ़ पाओगे मुझे
लौटा पाओगे वो खोयी आस्था
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आरती 

पीला रंग

अमलतास की हथेली पर रचा पीला रंग है
प्रेम..
-आरती

प्रेम! तुम्हारा होना, न होना पीड़ा है...

तुमसे रुठी...
हथेली पर रखकर फ़ूंका
तुम नाखून पर चढ़कर कुतरे गए
एक बार फ़िर मुझमेँ लीन हुए
प्रेम! तुम्हारा होना, न होना
पीड़ा है...
(आरती)

एकतरफा प्रेम

प्रेम हमेशा से एकतरफा ही रहा है..
उसने कहा था
मैँ सोचती रही थी देर तक
आख़िर एकतरफा प्रेम होता ही क्योँ है
फ़िर जाने कब पल्केँ भीँच ली थीँ मैँने
और मन ही मन दुआ की थी
प्रेम तुम जब भी छूना..
एक जोड़ी मन ही छूना..
-आरती

फ़ासले की पुड़िया

आँख की डिबिया मेँ फ़ासले की पुड़िया भरी- भरी
फ़ासले की पुड़िया मन की डिबिया मेँ ख़ाली-ख़ाली
(आरती)

तेरी याद जैसे मोगरा

तेरी याद जैसे मोगरा
बिखर भी जाएँ पर महक नहीँ जाती...
-आरती

मुस्कुराने का सबब

छलक जाने दे मुझे न क़ैद कर इन पल्कोँ मेँ
कि अब कि जो रुका....
दुनिया पूछ लेगी मुस्कुराने का सबब..
(आरती)

तेरे नाम की चिट्ठियाँ..

तेरे इंतज़ार के पन्ने पीले पड़ते रहे
मैँ वक़्त की पल्कोँ को हथेलियोँ से ढाँपे 
पहने रही तेरे लफ़्ज़ोँ का लम्स
काटती रही पहाड़ की ऊँचाई
पीती रही जाने कितने समंदर
पर तुम लिपटे रहे अबोधता की चादर मेँ
मैँ..ईश्वर को अर्पित करती रही
तेरे नाम की चिट्ठियाँ..
(आरती)

आँखेँ नम क्योँ रहती हैँ

प्रेम,
तुम्हारी हथेलियाँ ख़ाली
आँखेँ नम क्योँ रहती हैँ..
(आरती)

मुझे रहस्य कहता है..

उदासी का सबब पूछता है
बेचैनी पर मुस्काता है
अजब शख़्स है
ख़ुद अबूझ होकर
मुझे रहस्य कहता है..
(आरती)

क्या वो भी मुझे सोचता होगा

सोचती हूँ क्या वो भी मुझे सोचता होगा
वो अधलिखे ख़त जो कभी भेजे ही नहीँ
ख़ुद फ़िर-फ़िर पढ़ता होगा
(आरती)