Thursday, May 30, 2013

वक्‌त के पायदान से लुढ़का हूँ मैँ,
फिर अतीत की गोद मेँ झूल जाना है मुझे..

-आरती

माँ...



रुई के फाहोँ सी कोमल हथेलियाँ तुम्हारी
मेरे गालोँ को थपथपातीँ कभी माथे पर दुलारतीँ..

माँ कहाँ से पाई तुमने इतनी कोमलता..

स्नेह की आँच पर सेकती तुम गोभी के पराँठे
तुम्हारी उँगलियोँ के स्पर्श से हो जाते जो कुछ ज़्यादा नर्म..
जीवन की दौड़ मेँ जब कभी गिर जाए..हौँसला मेरा
बस! एक थपकी बहुत है तुम्हारी..मेरे फिर खड़े होने को..

तुम्हारी नज़र मेँ मैँ सबसे सुँदर,मैँ सबसे काबिल..
इसी विशवास पर कर लेती मैँ सब कुछ हासिल..

-आरती
जहाँ सोच का दायरा  ख़त्म होता है,
दिल की दहलीज़ वहीँ से शुरू होती है।

-आरती

मैं बच्चा बना रहना चाहता हूँ


मैं बच्चा बना रहना चाहता हूँ
रिश्तों की क्लास में

बेबाक़ी से सब कुछ कह देने वाला

उतार लेना चाहता हूँ
अपनी ज़हन की कॉपी में
ब्लैकबोर्ड पर लिखे सभी नियम कायदे

रट लेना चाहता हूँ
हर पाठ का आशय

गिनना चाहता हूँ
पन्नों पर 'गुड', 'वैरी गुड' की संख्या

ग़लती पर कान पकड़
खड़ा हो जाना चाहता हूँ बेंच पर

ज़ुबानी याद रखना चाहता हूँ
ज़िन्दगी के फलसफे

मिटा देना चाहता हूँ
शून्य की हर एक परछाई.....

*******(आरती)******