रुई के फाहोँ सी कोमल हथेलियाँ तुम्हारी
मेरे गालोँ को थपथपातीँ कभी माथे पर दुलारतीँ..
माँ कहाँ से पाई तुमने इतनी कोमलता..
स्नेह की आँच पर सेकती तुम गोभी के पराँठे
तुम्हारी उँगलियोँ के स्पर्श से हो जाते जो कुछ ज़्यादा नर्म..
जीवन की दौड़ मेँ जब कभी गिर जाए..हौँसला मेरा
बस! एक थपकी बहुत है तुम्हारी..मेरे फिर खड़े होने को..
तुम्हारी नज़र मेँ मैँ सबसे सुँदर,मैँ सबसे काबिल..
इसी विशवास पर कर लेती मैँ सब कुछ हासिल..
-आरती