जाने हवा का रुख़ बदला है, या तुम
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जाने हवा का रुख़ बदला है,या तुम,
मैं तो अब भी वहीँ खड़ी हूँ..
लाल फूलों का रंग कुछ हल्का पड़ गया है,
पर मेरे हाथ अब भी इन्हें थामे हुए हैं..
माथे पर जो दरारें पड़ गईं हैं,
भरती रहती हूँ उन्हें उम्मीदों की रेत से..
इस चाह में तुम्हें आवाज़ देती हूँ हर बार,
कि शायद अब के तुम्हारे दिल को दस्तक दे पाऊँ..
इक अरसा हुआ तुम्हें सुने हुए..
मेरा नाम तुम्हारे होठों को छुए हुए..
अब इंतज़ार भी थक गया है..
राह तकते - तकते..
लौटोगे या नहीं..मैं पूछूंगी नहीं तुमसे,
बस इक सवाल करती हूँ..
तुम्हारी यादों में तो हूँ न ??
-{आरती}
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जाने हवा का रुख़ बदला है,या तुम,
मैं तो अब भी वहीँ खड़ी हूँ..
लाल फूलों का रंग कुछ हल्का पड़ गया है,
पर मेरे हाथ अब भी इन्हें थामे हुए हैं..
माथे पर जो दरारें पड़ गईं हैं,
भरती रहती हूँ उन्हें उम्मीदों की रेत से..
इस चाह में तुम्हें आवाज़ देती हूँ हर बार,
कि शायद अब के तुम्हारे दिल को दस्तक दे पाऊँ..
इक अरसा हुआ तुम्हें सुने हुए..
मेरा नाम तुम्हारे होठों को छुए हुए..
अब इंतज़ार भी थक गया है..
राह तकते - तकते..
लौटोगे या नहीं..मैं पूछूंगी नहीं तुमसे,
बस इक सवाल करती हूँ..
तुम्हारी यादों में तो हूँ न ??
-{आरती}