Tuesday, December 25, 2012

जाने हवा का रुख़ बदला है, या तुम

जाने हवा का रुख़ बदला है, या तुम
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जाने हवा का रुख़ बदला है,या तुम,
मैं तो अब भी वहीँ खड़ी हूँ..

लाल फूलों का रंग कुछ हल्का पड़ गया है,
पर मेरे हाथ अब भी इन्हें थामे हुए हैं..

माथे पर जो दरारें पड़ गईं हैं,
भरती रहती हूँ उन्हें उम्मीदों की रेत से..

इस चाह में तुम्हें आवाज़ देती हूँ हर बार,
कि शायद अब के तुम्हारे दिल को दस्तक दे पाऊँ..

इक अरसा हुआ तुम्हें सुने हुए..
मेरा नाम तुम्हारे होठों को छुए हुए..

अब इंतज़ार भी थक गया है..
राह तकते - तकते..

लौटोगे या नहीं..मैं पूछूंगी नहीं तुमसे,
बस इक सवाल करती हूँ..

तुम्हारी यादों में तो हूँ न ??

-{आरती}

Sunday, December 23, 2012

अभी बाकी है

   अभी बाकी है
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हवा  के  झोंके  से  बुझ  गयी  थी  जो 
वो  लौ  मुझ  में  अभी  बाकी  है..
 
वक़्त  की  भीड़  में  खो  गया  था  जो 
वो  लम्हा  मुझ  में  अभी  बाकी  है..

शख्सियत  की  जंग  में  हार  गया  था  जो 
वो  वजूद  मुझ  में  अभी  बाकी  है..
 
पल्कों  की  चिल्मन  से  रूठ  गया  था  जो 
वो  ख़वाब  मुझ  में  अभी  बाकी  है..

दिल  की  मिटटी  में  दफ्न  हो  गया  था  जो 
वो  जज़्बात  मुझ  में  अभी  बाकी  है..
 
ज़िन्दगी  की  राह  पर  छूट  गया  था  जो 
वो  मोड़  मुझ  में  अभी  बाकी  है ...

-(आरती)

Thursday, December 20, 2012

एहसासों की डायरी

शब्दों की कतरनें
एहसासों की डायरी
काग़ज़ पर उड़ेलकर जज़्बातों की स्याही..

दर्ज करते हैं पन्ने दर पन्ने
उन लम्हातों की शायरी..

जो तुमने कही और मैंने सुनी..

तिनका-तिनका चुन कर तुम्हारे लबों से
समेटे हैं मैंने यह तमाम हर्फ़..

जब कभी लौट पाओ तो देखना
कि तुम.. गए ही कब थे..

मैं- तुम्हारी शायरा..

~~(आरती)~~

Friday, November 2, 2012

Masoom Khayaal

यादों  के  दरवाज़े  पर  फिर  ख्यालों  ने  दी  है  दस्तक ..

मैंने  हाथ  बढ़ाया ..
खोल  दिए  सभी  बंद  दरवाज़े ..

एक  मासूम  सा  ख़याल  आकर  बैठ  गया  मेरे  पास ..

पूछा , कैसी  हो  तुम ?

कुछ  न  कह  सकी  मैं ..


मेरी  ख़ामोशी  में  वो पढ़  गया  था ..
सब  बातें , जो  थी  अनकही ..

क्या  चलोगी  मेरे  संग ?
देखोगी  एक  दुनिया  नई ?

मैं  हो  गयी  संग  उसके

साथ  लिए  कई  अरमान ,
कुछ  अनछुए  एहसास  भी

तय  करने  एक  नया  सफ़र ..
एक  अदृश्य ,अनदेखे  जहाँ
की  ओर ..

तभी  कुछ  खिंचता -सा  हुआ  महसूस ..

हकीक़त  की  बेड़ियों  ने  जकड  लिए  थे ..
पांव  मेरे ..

~*~आरती ~*~

Thursday, November 1, 2012

ग़लत ठहरा दो मुझे


एक उम्मीद बंधाई थी तुमने,
कहा था मेरे यकीन पर यकीन करो..

उस दिन सांझ भी ठहर गई थी,
तुम्हारे इंतज़ार में..

दरवाज़े पर दस्तक देती रही थी देर तक,
नाउम्मीदी की हवाएं..

पर मैंने भीतर न आने दिया,
कस कर बंद कर लिए थे किवाड़..

क्या तुम्हारा इंतज़ार ही मेरा काम है?
आज.. ग़लत ठहरा दो मुझे..

-(आरती)



Thursday, October 25, 2012


थम  जाते  हैं   कदम  मेरे ,
तेरी  यादों  के  मकान  पर ..
एक  दहलीज़  है  जो  मैं , लांघ  नहीं  पाती ..

Tuesday, October 23, 2012

Nishabd

मैं चुप थी,
तुम भी वहां मौन थे..
शायद अब शब्दों की ज़रूरत ख़त्म हो चुकी थी..