वो दिन जब रंग बिखरे हों बेतरतीब
फर्श पर
और कैनवास कोरा रह जाए
वो दिन जब ज़बान भूल जाए
लफ़्ज़ों का ज़ायका
और ख़ामोशी चखने लगे
वो दिन जब यादों से लबरेज़ हो ज़हन
बस....उसकी याद का सिरा
हाथ न लगे
वो दिन जब आँखों में न उतरे
समंदर
और नदी अपनी नमी खो दे
वो दिन जब प्रेम के हरे दिन
भूरे पड़ने लगें
और शाख पर काँपता आख़री पत्ता भी गिर जाए
वो दिन जब तुम चल दो चुप चाप
मुझसे दूर
और अपने पदचिन्ह भी मिटा दो
उस दिन उस पल हो जाऊं मैं
संवेदन शून्य ……
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आरती
२८ /८/१४
फर्श पर
और कैनवास कोरा रह जाए
वो दिन जब ज़बान भूल जाए
लफ़्ज़ों का ज़ायका
और ख़ामोशी चखने लगे
वो दिन जब यादों से लबरेज़ हो ज़हन
बस....उसकी याद का सिरा
हाथ न लगे
वो दिन जब आँखों में न उतरे
समंदर
और नदी अपनी नमी खो दे
वो दिन जब प्रेम के हरे दिन
भूरे पड़ने लगें
और शाख पर काँपता आख़री पत्ता भी गिर जाए
वो दिन जब तुम चल दो चुप चाप
मुझसे दूर
और अपने पदचिन्ह भी मिटा दो
उस दिन उस पल हो जाऊं मैं
संवेदन शून्य ……
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आरती
२८ /८/१४