Wednesday, August 27, 2014

संवेदन शून्य

वो दिन जब रंग बिखरे हों बेतरतीब
फर्श पर
और कैनवास कोरा रह जाए

वो दिन जब ज़बान भूल जाए
लफ़्ज़ों का ज़ायका
और ख़ामोशी चखने लगे

वो दिन जब यादों से लबरेज़ हो ज़हन
बस....उसकी याद का सिरा
हाथ न लगे

वो दिन जब आँखों में न उतरे
समंदर
और नदी अपनी नमी खो दे

वो दिन जब प्रेम के हरे दिन
भूरे पड़ने लगें
और शाख पर काँपता आख़री पत्ता भी गिर जाए

वो दिन जब तुम चल दो चुप चाप
मुझसे दूर
और अपने पदचिन्ह भी मिटा दो

उस दिन उस पल हो जाऊं मैं  
संवेदन शून्य ……
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आरती
२८ /८/१४ 

Monday, August 25, 2014

लौट आओ कि तुम बिन रौशनी कम है
आँख भीगी नहीँ पर हँसी नम है...
-आरती
मैं तुम्हे क्यों याद करूँ
कोई ख़ुद को भी याद करता है भला.…

-आरती 
समंदर सुनो,
मुस्कान बाँटो न बाँटो 
आँसू बाँट लेना मुझसे
-तुम्हारी नदी

Monday, August 11, 2014

तुम्हारी उम्मीद करना...
नये रास्तोँ पर पुरानी यादेँ ढूँढ़ना है।
-आरती

Sunday, August 10, 2014

वो देखकर भी न देखना
सुनकर..न सुनना
काश ! मैँ भी सीख पाती... 
तुम सा हुनर
(आरती)

Wednesday, August 6, 2014

तुम्हें ढूँढ़ते हुए मैंने
पृथ्वी के जाने कितने ही
चक्कर लगाये

नदी की हर एक लहर पर चलकर
अपने समन्दर का पता पूछा

एक मुट्ठी उम्मीद की माटी लिए
पर्वत पर तेरे होने के निशान पूछे

माज़ी की धुँधलकी परतों के नीचे से छांटें
स्मृतियों के रंगीन पंख

खुबानी की नरम छाया तले
तेरे बिछे रुमाल का सिरा खोजा

पर तुम तो भींची पलकों के बीच छिपे थे

कल देर तक सोती रहीं ये आँखें
कि जो जागीं...तुम्हें खो देंगीं …
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आरती 

Monday, August 4, 2014

यथार्थ का वार

काँच की शीशियाँ फ़ूटी हैं
भ्रम के नर्म हाथों पर
ज़ख्म गिरे हैं गहरे…
यथार्थ का वार शायद
इसी को कहते हैं।
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आरती

Sunday, August 3, 2014

तुम्हें याद करना

तुम्हें याद करना…मन में कुछ उधड़े हुए का 
सिये जाना है। 
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-आरती
कोई दूर है ऐसे
जैसे आस-पास है
-आरती