Sunday, July 27, 2014
Wednesday, July 16, 2014
Sunday, July 13, 2014
ख़ाली कमरे में गूंजती रही थीं
भरी हुई कई चुप्पियाँ
कभी-कभी प्रार्थनाएँ टकरा जाती हैं
हवा में बिखरी और प्रार्थनाओं से
अंतहीन समय घिसटता रहता है
दिन, महीने, सालों के खाकों में बंटकर
कोई आवाज़ नहीं देता सदियों तक
देहलीज़ पर ठिठकी रहती हैं तितलियाँ
बारिश सूखी रह जायेंगी क्या… इस बार भी
नहीं.... प्रार्थनाएं सही जगह पर पहुँच गयीं हैं शायद
कमरे की दीवार पर अभी-अभी
कुछ गिरा है
तेरी आवाज़ की रोशनाई है शायद……………
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आरती
Thursday, July 10, 2014
दो अलग-अलग शहरों को
जो एक सड़क जोड़ती थी
उम्मीद की..
अब वो चौराहा हो गयी है
मेरे दुपट्टे की कोर से बंधा सिक्का
कहीं खो गया है
अब तो आसमान की आँख से भी
कोई तारा नहीं टूटता
पर्पल बोगनविलिया पर पसरी रहती है
बेरंग उदासी
पर जानते हो कल बारिश के बाद
तार पर लटकी आख़री बूँद में
तुम्हारा चेहरा दिखा था
मैंने हथेली में भर.…ओढ़ लिया है उसे
बोगनविलिया पर घोंसले बनाकर
टांग दिए हैं मैंने
दुपट्टे की कोर से बाँध लिया है
आसमान से टूटा तारा
चौराहे पर रख आयी हूँ.…
अपने पदचिन्ह
तुम उन पर पाँव रखना और लौट आना
ख़ुद से मुझ तक………
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आरती
१०/७/१४
जो एक सड़क जोड़ती थी
उम्मीद की..
अब वो चौराहा हो गयी है
मेरे दुपट्टे की कोर से बंधा सिक्का
कहीं खो गया है
अब तो आसमान की आँख से भी
कोई तारा नहीं टूटता
पर्पल बोगनविलिया पर पसरी रहती है
बेरंग उदासी
पर जानते हो कल बारिश के बाद
तार पर लटकी आख़री बूँद में
तुम्हारा चेहरा दिखा था
मैंने हथेली में भर.…ओढ़ लिया है उसे
बोगनविलिया पर घोंसले बनाकर
टांग दिए हैं मैंने
दुपट्टे की कोर से बाँध लिया है
आसमान से टूटा तारा
चौराहे पर रख आयी हूँ.…
अपने पदचिन्ह
तुम उन पर पाँव रखना और लौट आना
ख़ुद से मुझ तक………
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आरती
१०/७/१४
Tuesday, July 1, 2014
ख़ामोशी का शब्दकोश
रात मेंह बरस रहा था
कितनी ही देर भीगती रही थी मैं
बिना भीगे...
कई निवाले निगल गई थी मैं
तुम्हारे और मेरे बीच पसरे
उन मूक क्षणों के…
हथेली में भर-भर जमा करनी चाही थी मैंने
तुम्हारी चुप्पियाँ
ताकि समझ सकूँ तुम्हारी ख़ामोशी का शब्दकोश
तुम ही ने कहा था न
" किसी का इंतज़ार है तुम्हारे शब्द...शायद !! "
तो क्यों न इस बार किरदार बदल लिए जाएँ
आपस में…
अबकि इंतज़ार "मेरा" हो
और शब्द "तुम्हारे"………।
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आरती
१/७/१४
कितनी ही देर भीगती रही थी मैं
बिना भीगे...
कई निवाले निगल गई थी मैं
तुम्हारे और मेरे बीच पसरे
उन मूक क्षणों के…
हथेली में भर-भर जमा करनी चाही थी मैंने
तुम्हारी चुप्पियाँ
ताकि समझ सकूँ तुम्हारी ख़ामोशी का शब्दकोश
तुम ही ने कहा था न
" किसी का इंतज़ार है तुम्हारे शब्द...शायद !! "
तो क्यों न इस बार किरदार बदल लिए जाएँ
आपस में…
अबकि इंतज़ार "मेरा" हो
और शब्द "तुम्हारे"………।
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आरती
१/७/१४
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