Wednesday, September 30, 2015

अपने-अपने हिस्से का दुःख

अँधेरे कमरे में
जिस तरह किवाड़ खुलने से
एक निश्चित जगह पर
गिरती है रौशनी
उसी तरह गिरती है पीड़ा
एक तयशुदा मन पर
एक तयशुदा देह पर
जानते हो ! तुम्हारा मेरे शहर में आना
किसी चमत्कार से कम न था
उस रोज़ किसी अपने से कहा था मैंने
"क्या एक दिन के लिए आपकी आँखें मेरी आँखें हो सकती हैं ?"
और हुईं भी।
पर मैं भूल गयी थी साझे मन की भी होती है
अपने -अपने हिस्से की पीड़ा
अपने-अपने हिस्से का दुःख
तुम्हारा किसी और का होना
मेरे प्रेम को कम नहीं करता
तुमसे भले छूट जाऊँ मैं
थोड़ा-थोड़ा करके
प्रेम वहीं है वहीं रहेगा
मेरी अँधेरी देह में
जहाँ एक निश्चित जगह पर
गिरती है रौशनी
ठीक मन पर
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आरती

Saturday, September 26, 2015

सपने के पांव

शब् भर दौड़ता रहा था किसी चेहरे के पीछे..
सुबह सपने के पांव छिले मिले हैँ..
(आरती)

प्रेम की सोच का चेहरा

सोचती हूँ
काश! तुम्हारी भौँह पर लगे टाँकोँ को मैँ
छू सकती बस एक बार
अपनी उँगलियोँ से
कितना मासूम होता है न
प्रेम की सोच का चेहरा
पर जिस तरह हर प्रेम कहानी का नहीँ होता सुखाँत
उसी तरह साहिर मेरा न हुआ
और हर अमृता को इमरोज़...
नसीब नहीँ होते
(आरती)

"कहाँ हो"

"कहाँ हो"
तुम्हारा ये पूछना
मुझे ज़रा और तोड़ता है हर बार
काश ! मुझे बाहर नहीँ
भीतर ढूँढा होता
(आरती)

होने की रिक्तता

तुम हो 
पर कहीँ नहीँ हो
शायद ऐसी ही होती है
किसी के होने की रिक्तता 
(आरती)

Wednesday, September 9, 2015

कविता में गुंथे शब्द

कविता में गुंथे शब्द…
छवि है तुम्हारी
इस तरह शब्दों को छूकर मैं
हर दफा तुम्हे छू लेती हूँ
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आरती   

Tuesday, September 8, 2015

रेत घर

स्वप्न में मैं किसी ऐसे द्वीप पर थी
जहाँ शिलाएँ इतनी चिकनी थीं
कि मुश्किल था पाँव के तलवों का टिक पाना

मेरी देह अंतरिक्ष में उड़ते
किसी यान की तरह बह रही थी

ईश्वर मौजूद नहीं था वहाँ
जिसे अपनी नाराज़गी जता सकती

मेरी हथेली में हल्के गुलाबी रंग की एक सीप थी
जिसे एक रेशमी धागे से बाँध रखा था मैंने

जाने क्या था उसमें
क्यों बाँध रखा था मैंने

मैं किसी नीले टुकड़े की तलाश में थी
जिसमें लहरें एक ताल पर आती-जाती हैं

पर किनारे पर बिछी  रेत को छूती नहीं
इस तरह किनारे पर बने रेत घर
आबाद रहते हैं हमेशा

एक लम्बी यात्रा के बाद
आख़िर वो नीला टुकड़ा दिखा

मैंने उस गुलाबी सीप को खोला
ख़ाली थी वो
क्यूंकि मुझे उन लहरों में से
बस एक लहर भरनी थी उसमें

ताकि मेहफ़ूज़ रह सके पृथ्वी पर
हर एक रेत घर
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आरती