Friday, May 27, 2016

बस एक हल्की थपकन

मन बिल्ली के पंजों से खुरची
गेंद की तरह लगता है कभी
जिसे खुद आपने बिल्ली को थमाया हो
ताकि सुन्न पड़ चुकी वो चीज़ खुरचन से फ़िर जी उठे
हम जैसे अपनी ही क़ैद में गुज़र करते हैं
जबकि ये सज़ा भी हम ही ने मुक़र्रर की है
ये क़ैद, प्रेम की क़ैद है
'प्रेम' कितना छोटा-सा शब्द है
उसकी पीठ उतनी ही लम्बी
हज़ार खरोंचें और एक सख़्त पीठ
पर जानते हो बस एक हल्का बोसा
बस एक हल्की थपकन काफ़ी है इसपर
फ़िर मुड़कर देख पाने के लिए...
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आरती



  

Saturday, May 21, 2016

जीवन की सांत्वना

अपने-अपने अँधेरों में गुम 
उजास की अास लिए
खुद के छितरे हुए आश्वासन को बटोरती
कविता कुछ और नहीं
जीवन की सांत्वना है... 
(आरती)