Sunday, June 28, 2020

वेदना

दृश्यों और बिंबों के सामानांतर चलती
एक आवाज़ की महीन सी रेख
जिसे सुनते ही कुछ भीगा भीगा सा
जमने लगता है भीतर
मैं 'क्लैपर बोर्ड' पर 'क्लैप' देकर
फ्रेम से बाहर हो जाना चाहती हूँ
पर मेहसूसती हूँ कोई हरी बेल सी
बाहर से भीतर खींच रही हो
मन की वेदना पर उगा जैसे
क्षीर चम्पा रक्त
_______
आरती

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