Friday, November 22, 2013

माज़ी



जब चलते-चलते थक जाओ तो कुछ देर ही सही
थाम लेना पैरोँ के पहिए..

बहाने से उतर जाना पल दो पल ज़िन्दगी की साइकल से..

देखना ग़ौर से मुड़कर
कहीँ बहुत पीछे तो नहीँ छूट गया ना..

धूल मेँ लिपटा माज़ी....

(आरती)

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